आओ,
पुरखों के युग को देखें
वहाँ संवेदना का
इतिहास छिपा है।
नैसर्गिक सुविधाएँ
थीं घर में
सोने की चिड़िया
नारी में दिखती देवी
थीं गंगा जैसी नदियाँ
अंगुलिमाल यही तो
बोले थे -
मेरे भीतर भी
करुणाकाश छिपा है।
ठहरा,
बचपन की यादों पर
वृद्धावस्था का अनुभव
जैसे होता है नीवों पर
सुंदर महलों का वैभव
जैसे अपनी
गीत उषा के पीछे
माँ का संघर्षी
संन्यास छिपा है।