पश्चिम की नौंटकी
सीख रहा देश
ऊँचे किरदार
मगर ओछे गणवेश।
तृष्णा के पाँव
फिसलते ढलान पर
औंधे मुँह गिरे
गए आसमान पर
अपना ही गाँव
आज हो गया विदेश।
भौंड़ी, अश्लील, उग्र
शिष्टता हुई
भद्रता, कुलीनता
अशिष्टता हुई
आँखें निर्लज्ज हुईं
नकटा आवेश।
श्वानों के जूठन को
चाटते कुबेर
खटमिट्ठे रिश्तों के
ठुकराए बेर
किए गए तिरस्कार
स्वागत में पेश।