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कविता

इस शहर में

रामसनेहीलाल शर्मा ‘यायावर’


ढूँढ़ते हो आदमी
क्या बावले हो
इस शहर में ?

मॉल है, बाजार है
कालोनियाँ हैं
ऊबते दिन, रात की
रंगीनियाँ हैं
भीड़ में कुचलीं
मरीं संवेदनाएँ

ढूँढ़ते स्वर मातमी
क्या बावले हो
इस शहर में ?

कार, कंप्यूटर, कमेंट्री
मैच, दंगा
शोर, भाषण, झूठ रैली
सत्य नंगा
खौखियाती खीझ
कुर्सी, गालियाँ, लड़ते बिजूके
ढूँढ़ते दृग में नमी
क्या बावले हो
इस शहर में ?

दौड़ अंधी
लक्ष्य ओझल
साँस फूली
दनुजता हँसती
मनुजता राहभूली
हादसे, हिंसा,
धमाके, रुदन, आँसू
ढूँढ़ते इनमें कमी
क्या बावले हो ?
इस शहर में ?


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