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कविता

मौसम हुआ मिहिर कुल

रामसनेहीलाल शर्मा ‘यायावर’


चंगेजी तेवर वाले दिन
मौसम हुआ मिहिर कुल।

तैमूरी साँस में
लुटते सपने
आमजनों के
कंक्रीटी जंगल
पथराए पल
कमलवनों के
लाक्षागृह जलते हैं भीतर
अटकें आकुल-व्याकुल।

छाती पर
पामीर लदा है
पैरों तले सहारा
नागफनी जंगल में
भटके
शुभ संकल्प हमारा
राजद्वार पर व्यर्थ
पुकारें
अब तो सिम-सिम खुल।

शील कहाँ बच पाएगा
जब लूटें
आल्हा-ऊदल
खेत छोड़
सागर के ऊपर
मेघ बरसते हैं जल

सिंहासन को
घेरे बैठै
अब ये माहिल मातुल।


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