चंगेजी तेवर वाले दिन
मौसम हुआ मिहिर कुल।
तैमूरी साँस में
लुटते सपने
आमजनों के
कंक्रीटी जंगल
पथराए पल
कमलवनों के
लाक्षागृह जलते हैं भीतर
अटकें आकुल-व्याकुल।
छाती पर
पामीर लदा है
पैरों तले सहारा
नागफनी जंगल में
भटके
शुभ संकल्प हमारा
राजद्वार पर व्यर्थ
पुकारें
अब तो सिम-सिम खुल।
शील कहाँ बच पाएगा
जब लूटें
आल्हा-ऊदल
खेत छोड़
सागर के ऊपर
मेघ बरसते हैं जल
सिंहासन को
घेरे बैठै
अब ये माहिल मातुल।