पलकों पर धर गया
	न जाने कौन उदासी
	           अच्छी खासी।
	कल बाजार गया था
	पागल मन बनजारा
	माँ का हिया बेच
	ले आया आँसू खारा
	बापू की पगड़ी
	अब इसमें रही नहा-सी
	           अच्छी खासी।
	गाँठ पिछौरी में बांधे थे
	कुँवर कलेऊ चना-चबैना
	किस्सा गंगा राम-बुलाकी
	एक छोर पर तोता-मैना
	एक गाँठ में
	शाम अवध की
	और भोर की कलरव काशी
	           अच्छी खासी।
	अल्हड़ पनघट, भोले सपने
	खेल तमाशे उत्सव अपने
	इज्जत, बात, गीत की कड़ियाँ
	लगती अक्षर-अक्षर जपने
	भोला बचपन, नजरें प्यासी
	           अच्छी खासी।
	ड्रैगर कंक्रीट का आया
	मृगतृष्णा-शूर्पणखाँ लाया
	मॉल और ओवर ब्रिज मिलकर
	           लाईं सड़कें सत्यानासी
	           पलकों पर धर गया
	न जाने कौन उदासी
	अच्छी खासी।