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कविता

फूल हैं हम हाशियों के

यश मालवीय


चित्र हमने हैं उकेरे
आँधियों में भी दियों के
हमें अनदेखा करो मत
फूल हैं हम हाशियों के

करो तो महसूस
भीनी गंध है फैली हमारी
हैं हमीं में छुपे
तुलसी-जायसी, मीरा-बिहारी
हमें चेहरे छल न सकते
धर्म के या जातियों के

मंच का अस्तित्व हम से
हम भले नेपथ्य में हैं
माथे की सलवटों सजते
जिंदगी के कथ्य में हैं
धूप हैं मन की, हमीं हैं
मेघ नीली बिजलियों के

सभ्यता के शिल्प में हैं
सरोकारों से सधे हैं
कोख में कल की पले हैं
डोर से सच की बँधे हैं
इंद्रधनु के रंग हैं
हम रंग उड़ती तितलियों के

वर्णमाला में सजे हैं
क्षर न होंगे अग्नि-अक्षर
एक हरियाली लिए हम
बोलते हैं मौन जल पर
है सरोवर आँख में
हम स्वप्न तिरती मछलियों के


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