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कविता

चला गया वो साल...

यश मालवीय


एक याद सिरहाने रखकर
एक याद पैताने रखकर
चला गया वो साल, साल वो चला गया
खाली से पैमाने रखकर
भरे-भरे अफसाने रखकर
चला गया वो साल, साल वो चला गया

लंबी छोटी हिचकी रखकर
थोड़े आँसू सिसकी रखकर
टूटे सपनों के बारे में
बातें इसकी उसकी रखकर
चिड़ियों वाले दाने रखकर
गुड़ घी ताल मखाने रखकर
चला गया वो साल, साल वो चला गया

उजियारे, कुछ स्याही रखकर
कल की नई गवाही रखकर
लाल गुलाबी हरे बैगनी
रंग कत्थई काही रखकर
भूले बिसरे गाने रखकर
गानों में कुछ माने रखकर
चला गया वो साल, साल वो चला गया

नीली आँखों, चिट्ठी रखकर
इमली कुछ खटमिट्ठी रखकर
मुँह में शुभ संकेतों वाली
बस थोड़ी-सी मिट्टी रखकर
सच के सोलह आने रखकर
बच्चों के दस्ताने रखकर
चला गया वो साल, साल वो चला गया


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