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कविता

जब जैसा राजा बोलेगा

यश मालवीय


सिंहासन के आगे-पीछे
जी भर डोलेगी
जब जैसा राजा बोलेगा
परजा बोलेगी

राजा अगर हँसेगा
तो परजा भी हँस देगी
समझ न पाएगी अपनी
गर्दन ही कस लेगी
जागी-सी आँखों देखेगी सपना
सो लेगी

खून चूसते जो
उन पर ही वारी जाएगी
हर उड़ान, उड़ने से पहले
मारी जाएगी
उम्मीदों के नुचे हुए से
पर ही तोलेगी

अँधियारों के जख्म
रोशनी के प्यासे होंगे
हर बिसात पर
उल्टे-सीधे से पाँसे होंगे
सिसक-सिसककर हवा चलेगी
आँख भिगो लेगी

तुम्ही हो माता, पिता तुम्ही हो
गाती जाएगी
आँगन होगा, आँगन से
सँझबाती जाएगी
दुनिया अपनी साँस गिनेगी
नब्ज टटोलेगी

राजभवन के आगे भी
कुछ भिखमंगे होंगे
तीन रंग वाले किस्से भी
सतरंगे होंगे
धूप जल रही सी पेशानी
फिर-फिर धो लेगी


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