हम भी कितने सस्ते हैं
जब देखो तब हँसते हैं
बात बात पर जी हाँ जी
उल्टा पढ़ें पहाड़ा भी
पूँछ ध्वजा सी फहराना
बस विनती विनती विनती
सधा सधाया अभिनय है
रटे रटाये रस्ते हैं
हम तो इमला लिखते हैं
जैसा चाहो दिखते हैं
रोज खरीदे जाते हैं
रोज मुफ्त में बिकते हैं
यों जब जब परबत होते
हम दलदल में धँसते हैं
मुद्राएँ त्योरी वाली
एक साँस सौ सौ गाली
हमको तो आदत इसकी
पेट बजाएँ या ताली
इनके या उनके आगे
हम तो सिर्फ नमस्ते हैं