फूल सा हल्का हुआ मन
बोलकर तुमसे
आँख भर बरसा घिरा घन
बोलकर तुमसे
स्वप्न पीले पड़ गए थे
तुम गए जब से
बहुत आजिज आ गए थे
रोज के ढब से
मौन फिर बुनता हरापन
बोलकर तुमसे
तुम नहीं थे, खुशी थी
जैसे कहीं खोई
तुम मिले तो ज्यों मिला
खोया सिरा कोई
पा गए जैसे गड़ा धन
बोलकर तुमसे