वक्त को जैसे सँभाला जा रहा है
	नाव का पानी निकाला जा रहा है।
	
	दिन महीने पर्व
	कितने बरस डूबे
	गाँव डूबे
	मंदिरों के कलश डूबे
	बहुत ऊँचे उड़े एरोप्लेन से
	देखिए पैकेट उछाला जा रहा है।
	
	ये व्यवस्था
	भला करने पर तुली है
	बाढ़ राहत शिविर में
	बोतल खुली है
	भूख के संग बह रहे चूल्हे-सिलिंडर
	रोटियों का वहम पाला जा रहा है।
	
	पेड़ गर्दन तक धँसे हैं
	पर खड़े हैं
	है नई विपदा,
	पुराने आँकड़े हैं
	टोपियाँ हैं, फ्लैशगन हैं, कैमरे में
	कढ़ी बासी है, उबाला जा रहा है।
	
	हाथ में पानी लिए
	तलवार नंगी
	बस लुभाती, योजनाएँ
	है तिरंगी
	दरमियाँ है जश्ने आजादी कहें क्या
	होंठ का ताला उछाला जा रहा है।