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कविता

आहटें बदले समय की

मधु शुक्ला


आहटें बदले समय की सुन रहा है मन
एक सपना फिर नयन में बुन रहा है मन
           
धर गया कोई अचानक जादुई पुड़िया
फिर लगी तिनके जुटाने आस की चिड़िया
भावनाओं में हुई कुछ सुगबुगाहट-सी
गीत मौसम का नया फिर गुण रहा है मन

गंध चिर-परिचित लगी घुलने हवाओं में
बिंब सुधियों के कई उभरे दिशाओं में
बदलियाँ भ्रम की हटाकर धूप के आँगन
सीलते रिश्‍ते रुई सा धुन रहा है मन

पलटती हैं पृष्‍ठ रह-रह झील की लहरें
इन अबोले अक्षरों के अर्थ हैं गहरे
जिंदगी की रेत से अनमोल मोती-सा
पल मधुर अहसास का फिर चुन रहा है मन
 


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