सूखी नदिया, झील पियासी
पानी माँगे ताल
मौसम के सिर चढ़कर नाचे
फिर अगिया बेताल
उल्टी सीधी शर्त लगाए
नाचे दे-दे ताली
सुलग रहा है बिरवा-बिरवा
झुलस रही हर डाली
ढूँढ़े मिले न उत्तर ऐसे
पूछे कठिन सवाल
मौन बस्तियों में पसरे हैं
आतंकी सन्नाटे
आते-जाते हवा लगाती
है लपटों के चाँटे
सहमे गली और चौराहे
सुबक रहे चौपाल
झुलसे पंख लिए गौरेया
दुबकी घर के कोने
टिके पेड़ से हाँफ रहे हैं
ये बेबस मृगछौने
मरी बिचारी सोन मछरिया
ऐसा पड़ा अकाल
चिंताओं की गठरी लादे
धनिया खड़ी दुआरे
सोच रही है कैसे
आँगन के दुख-दर्द बुहारे
किसे दिखाए घाव हृदय के
किसे सुनाए हाल
मौसम के सिर चढ़कर नाचे
फिर अगिया बेताल