दिन पर दिन बीत चले
मन के घट रीत चले
इस तट से उस तट तक
मन से वंशी वट तक
हेर-हेर टेर-टेर
गाँव गली पनघट तक
आखिर मैं हार चली
दुख बाजी जीत चले
टूट गए सतरंगी
सपनों के पंख सभी
फिसल गए हाथों से
सीपी औ ‘शंख सभी
हीरामन सुवना को
बिसर सभी गीत चले
बिखर गए आशाओं के
सुरभित फूल सभी
गुजर गए आ-आकर
मौसम अनुकूल सभी
हरियाए पात सभी
अब तो हो पीत चले
ढेर सी प्रतीक्षाएँ
आँखों में बोई थीं
कितनी ही सौगातें
प्रीत ने सँजोई थीं
दीप बुझा देहरी के
अब तो मन-मीत चले
एक मोड़ आया यूँ
उम्र की कहानी में
कागज की नाव लिए
उतर गए पानी में
रुक-रुक कर साँसों का
कब तक संगीत चले।