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कविता

लेकिन कन्या

ओमप्रकाश तिवारी


भौजी पुत्र चाह में
पूरे नौ दिन
व्रत नवरात्र रहीं,
घी का दीप जलाकर
श्रद्धा की
गंगा में खूब बहीं;

पूर्णाहुति के लिए
खीर संग
तलीं पूड़ियाँ खिली-खिली,
लेकिन कन्या नहीं मिली।

हरियाणा के
कई घरों में
पुत्रों से परिवार भरा,
किंतु कमी
बस एक चीज की
कई गले न हार पड़ा;
पढ़े-लिखे हैं
भैंस बँधी हैं
और नौकरी मिली भली,
पर दुलहनियाँ नहीं मिली।

ममता माँ की
प्रेयसि का भी
प्यार मिला तरुणाई में,
पर जीवन भर
बँधा न धागा
सूनी पड़ी कलाई में;
दादी का
आशीष मिला
माँ दूधों-पूतों खूब फलीं
लेकिन बहना नहीं मिली।
 


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