मध्य में हूँ
	कहाँ जाऊँ ?
	
	पेट खाली,
	पर जुगाली
	अब यही दस्तूर है,
	दिन के संग-संग
	रात पाली
	किंतु दिल्ली दूर है।
	क्या निचोड़ूँ
	क्या नहाऊँ ?
	
	माह में बस
	एक दिन के लिए
	हम सुल्तान हैं,
	शेष उंतिस दिन तड़पते
	जेब में
	अरमान हैं।
	कैसे खाऊँ
	क्या बचाऊँ ?
	
	कंपनी के सेठ जी
	हरदम लगे
	नाराज हैं,
	और घर पे
	कामवाली बाइयों के
	नाज हैं।
	किस तरह
	सबको मनाऊँ ?
	
	कर्ज लेकर
	फ्लैट-बंगला, कर्ज से ही
	कार है,
	जो बचे वो
	कर समझकर
	काटती सरकार है।
	किस तरह
	सपने सजाऊँ ?