hindisamay head


अ+ अ-

कविता

नीम-निबौरी
शीला पांडे


इसकी-उसकी सबकी बखरी
चारो ओर मचा कुहराम।
बीन रहे हैं नीम-निबौरी
पा सकते थे चारों धाम!

पेट काट
तन-मन सुख खोकर,
खोया बचपन, धेले में दिन।
आँख-फोड़
दिन-रात पढ़ाई
छूटा हुनर, झमेले में छिन।
लेकर, मंडी
हाँक लगाएँ
चाहत बची, न मिलता दाम।

बैठे-ठाले,
फिरते रहते
जहाँ-तहाँ हैं बियाबान में।
अक्षर रखते
बैर-भाव हैं,
देखे जाते हर सिवान में।
इनके भी कब,
रोजगार हैं
सिस्टम में है पूरा झाम।

माटी में
तन माटी बोते
पोसें जठर-अनल की ज्वाला।
है लेकिन
भूखे बैतालों का
जमघट काँधे रखवाला।
पलट
करों से, बोटी नोंचें
रज साधक मरता निष्काम।

सारे हुनर,
योग्यता बंधक
कैसे हो घर में उजियारा!
दिवस-दिवस
घटना वितान का,
कहाँ पले फिर नभ का तारा?
दीप सजीं?
खोखल मीनारें,
देश भागता है अविराम।
 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में शीला पांडे की रचनाएँ