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कविता

पालों वाली नाव बनाई

शीला पांडे


पालों वाली नाव बनाई
केवट उनमें करता छेद!

तन-मन चीरा, टाँका, बाँधा।
अपनी लकड़ी साधा, राँधा।
हठ करते, आघात सहे सब
छाती पर धारा, ‘ले’ नाँधा
चप्पू-चप्पू रार कर रहे
कैसा पतवारों में भेद !

काता, बीना, रंगा, साजा।
मखमल तन बहुरंगा छाजा।
रेशम धागे गेंदे फूले।
चीर, शिखर से नाचे, झूले।
तान धरा सिर, हवा पलट दें
पालों में उपजा विच्छेद !

आर, पार नदिया तन-नापा।
जल में आग, भूख का तापा।
जीवन अड़ा पड़ा जल भीतर
तट देखे तन चढ़ा बुढ़ापा।
‘मोटर’ बाँध, नेह से दौड़ी
नाविक तीर न चलता, खेद।

पालों वाली नाव बनाई
केवट उनमें करता छेद।
 


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