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कविता

मायावी दाँवों के घेरे

शीला पांडे


मायावी
दाँवों के घेरे
उपजाएँ, बहुरूपी, फन।

‘ताले’ आड़
‘बेताले’ ठगते
तिल-तिल भर करते लाचार।
खूँटे खींच
ज्यों बाँधी गैया
मिल जाए, देखें, सरदार।
दाँव लगे
लें लूट तिजोरी
‘ताले’ को तोड़े हन-हन।

बौद्धिक, ‘शान’,
‘बड़े’, वैज्ञानिक
धरते स्वाभिमान का दम!
उलट कहावत,
नस दाबें ये
घनी पीर में टूटे, भ्रम।
नापें,
ठगें तराजू धरकर,
अगर-मगर टूटे छन-छन।

उजियारों पर
‘तम’ दे दे पहरे,
नाथें मन के तारों को।
राहु, केतु सम
बाँधें, छानें
शनि से-दागें, वारों को।
हेर-फेर
भय-त्रास बढ़ाएँ
घबराए जन-गण का मन।
 


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