देर नहीं लगती सुर-
ताल-टूट जाने में?
बात गई, होठों पर
साँझ गई, कोठों पर
तीर ज्यों, कमान से
बूँद, आसमान से,
बिखर, द्वार कब टिकते
‘ठाँव’ छूट जाने में ?
अक्षर, किताब में जो
रुपये, हिसाब में जो
वादे जो ‘दल’ के हैं
सपने जो, कल के हैं,
भला कहाँ-कब फलते
‘आज’ रूठ जाने में ?
मौसम वो ‘बीत’ गया
प्रेम-घड़ा ‘रीत’ गया
संवेदन ‘बहरे’ हैं
भाव-ज्वार ‘ठहरे’ हैं
गीत कहाँ कब गाते
राग फूट जाने में ?