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कविता

आस का दीप जलाए रखना

नीरज कुमार नीर


हो अँधेरा कितना जग में
आस का दीप जलाए रखना
सत्य की जय सदा होती है
यह विश्वास बनाए रखना।

जीवन पथ में चलते चलते
मिल जाए बनवास अगर भी
चुपके से आकर दुःस्वप्न में
ढल जाए मधुमास अगर भी
अच्छे दिन फिर फिर आएँगे
हृदय उम्मीद जगाए रखना। 

सीता की रक्षा करने को 
रावण से लड़ना पड़ जाए
पाने अपने अधिकारों को
कंसों से भिड़ना पड़ जाए
तुम राम कृष्ण के वंशज हो
मन पराक्रम बनाए रखना।

नन्हें दीये की लौ से भी
सौ सौ दीये जल सकते हैं
साहस भरा हो अंतस में
तो विघ्न सभी टल सकते हैं
विजय वीर को ही वरती है
धीरज ध्वज उठाए चलना।

हो अँधेरा कितना जग में
आस का दीप जलाए रखना
सत्य की जय सदा होती है
यह विश्वास बनाए रखना।
 


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