काल के धके-धके चरण।
अधखिली नई कली
सिर्फ प्यास में पली
और छाँव में जली
छल गई जिसे स्वयं शरण।
मोम-सा पिघल गया
साँझ को निगल गया
दिन उदास ढल गया
ओढ़-ओढ़ श्याम आवरण।
फूल सब बिखर गए
पात-पात कर गए
शूल ही उभर गए
शारव को दिया गया मरण।
कौन आज आएगा
प्रीत गीत गाएगा
धीर को बँधाएगा
दे नवीन प्रीति-व्याकरण।