hindisamay head


अ+ अ-

कविता

खत्म हुए आज अपने अनुबंध ऐसे

अलका विजय


खत्‍म हुए आज अपने अनुबंध ऐसे,
सागर की लहरों पर गीत लिखे जैसे।
कसमों और वादों की राहों पर चल के,
नयनों ने छल किया तो आँसू ही छलके।

बात रही मन में अधरों तक न आई,
नव नूतन दुल्‍हन सी हँसी भी शरमाई।
ख्‍वाहिश थी साथ रह चले जन्‍मों तक उनके,
उनके ही साथ रह के बन न सके उनके।

आँखों की बातें कभी आँखों से होती,
आज उर के दाह भी आँसू से धोती।
टकरा के घाटी ध्‍वनि लौटी हैं ऐसे
सागर के तीरे घट रीते हो जैसे।

चंदन मन बास देह गंध से नहाई,
पर आज संग मेरे केवल परछाईं।
ऋतुओं के आँगन में फूल झरे ऐसे,   
आए गीत बीते हैं मौसम के जैसे।
 


End Text   End Text    End Text