भले ले लो मुझसे, सभी साज दिल के,
अरे प्यार मेरे गले से लगा लो।
बिसर जाए सब वो विरह की व्यथाएँ
मिले दर्द कोई समय सिंधु से तो
रहे याद सारी मिलन की कथाएँ
हँसा कर रुला लो रुला कर सम्हालो।
अरे प्यार मेरे गले से लगा लो।
भ्रमर तान छेड़े किसी मंजरी पर
हो हर पल मनोहर हर पल सुहाना
कोई बाँसुरी की मधुर तान छेड़ो
कोई गीत गा लो कोई गुनगुना लो
अरे प्यार मेरे गले से लगा लो।
करो कुछ जतन ये मिलन जो अधूरा,
तड़पते रहे हम विरह वेदना में
जो सदियों से अब तक हुई भी न पूरी
तृषित इस अधर को सुधा रस पिला लो।
अरे प्यार मेरे गले से लगा लो।
है सच तो यही ना मिले दो किनारे
विरह राग बोली पपिहा पुकारे
विरहणी के मन में निराशा जो घोले
तो कैसे कोई इस हृदय को सम्हाले।
अरे प्यार मेरे गले से लगा लो।
उतर आई फिर से धरा पर थिरकती
लगे जैसे सिर की जटा में हो गंगा
मधुर यामिनी में चमकता है चंदा,
रजत रश्मियों की चुनर सर पर डाले।
अरे प्यार मेरे गले से लगा लो।
गिरा दो सभी भेद की ये दिवारें
सहा दर्द कितना विरह के दिनों में
खींची ये किसने है रेखा दिलों में,
स्नेहिल करो से इसे तुम मिटा लो।
अरे प्यार मेरे गले से लगा लो।
शत-पथ से विचलित करती सदा जो
कुंठा भरी जो मन की दशाएँ
ये जग के कलुष सारे मन में भरे जो
सँवर जाए जीवन जो उनको बहा लो।
अरे प्यार मेरे गले से लगा लो।
सदा के लिए कभी मुँह जो फेरे
कभी जो थे तेरे कभी जो थे मेरे
मिटेंगे जगत के तिमिर घन अँधेरे,
चलो प्रेम का एक दीपक जला लो।
अरे प्यार मेरे गले से लगा लो।