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कविता

जीवन हो बेला सा

ओम प्रकाश नौटियाल


जीवन अकुंठ अलबेला सा
सुरभित, मादक हो बेला सा

सुंदर अनुपम सुमन सद्दश्य
बहे ज्यों स्निग्ध पवन अद्दश्य
भावों का उमड़े रेला सा
सुरभित, मादक हो बेला सा

भरें खग ज्यों उन्मुक्त उड़ान
पुरोगामी हो प्रचल  प्रयाण
हर पल इक नया नवेला सा
सुरभित, मादक हो बेला सा

अंग से प्रस्फुटित किरण किरण
जीवन तत्वों में बिखर बिखर
जीना हो जाए खेला सा
सुरभित, मादक हो बेला सा

बेला की लघुता चाहे हो
आड़ी तिरछी सी राहें हों
पर लगे न एक झमेला सा
सुरभित, मादक हो बेला सा
 


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