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कविता

पत्र लिखा किसने गुमनाम

राजकुमारी रश्मि


पत्र लिखा किसने गुमनाम,
छोड़ दिया हाशिया तमाम।

टेढ़े-मेढ़े अक्षर उलझी आकृतियाँ
जिनसे हैं गूँज रहीं अनगिन प्रतिध्वनियाँ
दूर एक कोने में लिखा है प्रणाम।

स्याही को कागज पर ऐसे है बिखराया
बादलों के घेरे से कूदता हिरन आया
गमले में अँकुराया नन्हा-सा पाम।

जैसे ही किरणों का बढ़ा एक पाँव
देहरी से पहले ही ठिठक गई छाँव
एक साथ मिलीं सुबह-दोपहरी-शाम।

सुधियों के दंश कभी हल्के कभी गहरे
अंग-अंग मुरकी ले पोर-पोर लहरे
भावनाएँ काँप रहीं होकर उद्दाम।

थका हुआ बालक दे कंकड़िया फेंक
ऐसे ही बिखर गए प्रश्न भी अनेक
धुँधलाई दृष्टि, जहाँ लगा था विराम।
 


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