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कविता

दुख बोले

राजकुमारी रश्मि


दुख बोले
आओ मन बैठे
थोड़ी बात करें

खुली हवा में जाएँ हम तुम
फिर चौसर खेलें
या कोने में टिका हुआ यह
इकतारा ले लें
सिंदूरी खुशियों के यह पल
अपने साथ धरें

अगर साथ तुम रहे हमारी,
हार नहीं होगी
बिना तुम्हारे यह वैतरणी
पार नहीं होगी
हूक उठे जब भी प्राणों में
दो-दो हाथ करें

बहुत दिनों से यादों के भी
हिरन नहीं आए
हमने भी अब वशीकरण के
राग नहीं गाए
हँसी ठिठोली चुहल मसखरी
सभी दुभात करें
 


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