विकट हैं दिन
यह हमारा गीत कैसे जिएगा - सोचते हम।
फूल की पगडंडियों पर
राख बरसी रात भर कल
उड़ रहा है घाट पर
देखो किसी का फटा आँचल
भीड़ है दुःशासनों की
कौन इसको सिएगा - सोचते हम।
देख घटनाएँ हुई गुमसुम
आरती-होती हवाएँ
बाँचता है पेड़ बूढ़ा जो उधर
हादसों की ही कथाएँ
समय अंधा
कौन उसको दृष्टि देगा - सोचते हम।
साँस लेना हुआ मुश्किल
हुईं जहरीली हवाएँ
राग जो भीतर हमारे
हम उन्हें कैसे बचाएँ
हिमशिखर पर देवता
क्या फिर हलाहल पिएगा - सोचते हम।