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कविता

यह महागाथा

योगेंद्र दत्त शर्मा


तीर्थ यात्रा पर गए थे
जो बहुत पहले
सगुन पंछी लौटकर
घर आ रहे होंगे।

राम जाने
कब सुरक्षित वापसी होगी
या भँवर में
जिंदगी उनकी फँसी होगी
स्वजन मन को किस तरह
समझा रहे होंगे।

कहीं पर माता-पिता
छोटे बहन-भाई
कहीं पर अर्द्धांगिनी
बेचैन अकुलाई
राह तकते हुए सब
घबरा रहे होंगे।

तीर्थ धामों से मिली
खबरें भयानक हैं
जल कथाओं से उगे
दारुण कथानक हैं
कौन से संकट कहाँ
मँडरा रहे होंगे।

कहाँ होगा खेलता
मासूम-सा बचपन
सोचता अनहोनियाँ ही
यह सशंकित मन
प्रश्न जिसमें अनगिनत
टकरा रहे होंगे।

कंठ में अटकी
दुखों की यह महागाथा
हौलता है दिल
चटखता दर्द से माथा
आँख में दुःस्वप्न सब
पथरा रहे होंगे।
 


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