ताप हुए दिन
भाप हुए दिन
अपने ही अभिशाप हुए दिन।
चट्टानों को
तोड़-फोड़कर
तिलगी-तिलगी आग जलाई
तट को चकनाचूर किया,
पथरीले पठार पर
झरना एक,
नेह का बहता था
आल जाल से उसको जैसे पूर दिया
भीनी-भीनी खुशबू वाली
चंचल शोख हवाओं के
गला घोंटनी पंचायत की खाप
हुए दिन।
छायाओं वाले
दरख्त
सब उखड़े
आबादी की चौपट आँधी ऐसी आई,
चेहरों को
झुलसाती सबके
खुलवाती घर
ऐसी बही हवा हरजाई
सूरज ने
भ्रकुटी जो तानी
किरण-बाण संधान किए
खिंचे-खिंचे से चाप
हुए दिन।