hindisamay head


अ+ अ-

कविता

चुपचाप दुख

राम सेंगर


बिन खाए
बिना पिए
सारा दिन लोहे से लड़ कर
लौटा तेरा बाप
सुन बेटा,
अधपेटा
उठ न जाय थाली से
            तू ही अब हो जा चुपचाप।

फँसा गले में गुस्सा
आँखों में प्राण दिपें
पानी दे,
रोटी चमचोड़
पंखा ला, पीठ झलूँ
ढिबरी रख डिब्बे पर
पास बैठ,
तुन्नकना छोड़
तुम औरों के लाने हाड़-गोड़ तोड़ रहा
            भोग रहा कब-कब के शाप।

पढ़ी लिखी बिटियों को
हाँक दे कहाँ, बतला
जंगल के
हिंसक हैं जीव
बँधी अकल पर पट्टी
मुँह सबके खुले हुए
हतप्रभ हैं
देख कर गरीब
पंजा शैतान का मरोड़े इकला कैसे
            जारी हैं अंतर्संलाप।

पेट काटकर कैसे
पढ़ा रहा है तुझको
विश्वासों का
जीवट देख
अनुभव की भट्ठी पर
चढ़ी इस पतीली में
क्या खौले
जानते कितेक
दबी भाप, जब ढक्कन खोलेगी,
            दीखेगा, लोगों को भाप का प्रताप।

शब्द भंगिमा को
शास्त्रीय बना कर काहे
इसे छकाता है नादान।
द्वंद्व अलग है तेरे, माना,
पर तू अपनी
बीजशक्ति को भी पहचान।
हूँ मैं तुम दोनों के संघर्षों की साक्षी
            दोनों का जानूँ संताप।
 


End Text   End Text    End Text