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कविता

बेटी होना

अवध बिहारी श्रीवास्तव


मैं तो जन्मी थी पंख किए
पर, उड़ने का अवसर न मिला।

खिड़कियाँ खोलना नहीं बंद
करना सिखलाया गया मुझे
जो रस्ता भीतर खुलता था
वह पथ दिखलाया गया मुझे
‘‘जा, उड़कर आसमान छू ले’’
यह कहने वाला घर न मिला।

माँ ने अपना अतीत मुझमें
वैसा का वैसा भर डाला
डोली में बिठा दिया मुझको
जैसा चाहा था कर डाला
सबके संकेत मिले मुझको
पर अपना कोई स्वर न मिला।

अच्छी ‘मुन्नी’ अच्छी ‘पत्नी’
अच्छी ‘माँ’ मुझको होना था
सबके साँचों में ढलने से
अपना ही साँचा खोना था
मैं सबकी बनकर खड़ी रही
कोई मेरा बनकर न मिला।
 


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