पत्थरों को पाँखों में
बाँधा गया है,
उड़ानों का
संतुलन
साधा गया है।
देश अपना बहुत नाजुक
सोच वाला
यह सुबह की
प्लेट में
रखता गरीबी का निवाला
आटे में चोकर मिला
राँधा गया है।
पाँखियों का पेड़ से
रिश्ता अखरता,
हर नए
अध्याय
टूटे पंख धरता
फुनगियों तक देह से
आधा गया है।
एक भी पत्थर गिरा तो
पाँव टूटा,
अँधेरे की
गाय का
हर जगह खूँटा
मरघटों तक लाश का
काँधा गया है।