hindisamay head


अ+ अ-

कविता

छोटा शहर

अनूप अशेष


सब सोए हैं अपनी नींदों
दिन भी सोए हैं,
वर्तन-भँड़वे
धरे माँजने
मुँह बिन धोए हैं।

छोटा शहर लोग संकोची
रहन गाँव की-सी,
सुबह यहाँ
सोलह आने की
और रात बीती
थकी खाट महँके अँगड़ाई
कटहल कोए हैं।

कंडे की है राख पड़ी
हाथों का रोना है,
गैस चुकी
दूध नहीं
चूल्हे का धोना है
महँतारी की काँख दबे
बच्चे कुछ खोए हैं।

सारे काम सुबह से ज्यादा
शाम दोपहर कम,
रात फटे जाँगर
की होती
साँसत में हरदम
बिन आटा के भी इस घर में
सेंके-पोए हैं।
 


End Text   End Text    End Text