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कविता

पत्ते

गुलाब सिंह


हम तुम्हारे बाग के
टूटे हुए
छूटे हुए पत्ते
जलेंगे तो आग होंगे।

बाग पर तो है
तुम्हारा मालिकाना
फलों वाली दृष्टि ने
कुछ मूल्य पत्तों का न जाना
पथिक को छाया करेंगे
हम पसीने को सुखाती
हवा का अनुराग होंगे।
 
हट गए हम
नई कोंपल के लिए
पेड़ को भोजन
जड़ों को जल दिए
छोड़ दी शाखें
स्वयं यह सोचकर
हरेपन पर हम
न पीले दाग होंगे।

पवन ने झटके दिए
तो खड़े टीलों तक उड़े
हम सदा हर हाल में
ऊँचाइयों से ही जुड़े
अपनी मिट्टी में मिलेंगे
फिर घने छतनार होंगे
हयी में छिपकर
सुबह के साक्षी बन
शोर करते काग होंगे।
 


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