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कविता

इस मौसम में

सत्यनारायण


इस मौसम में
कुछ ज्यादा ही तना तनी है।

सच है स्याह
सफेद झूठ
यह आखिर क्या है
धर्मयुद्ध है
या जेहाद है
या फिर क्या है
इतिहासों के
काले पन्ने खुलते जाते
नादिरशाहों,
चंगेजों की चली-बनी है।

रह-रह
बदल रहा है मौसम
दुर्घटना में
आप भले
दिल्ली में हो
या मैं पटना में
पानीपत की आँखों में
अब भी आँसू हैं
और आज भी
नालंदा में आगजनी है।

घड़ियालों की
बन आई है
समय-नदी में
नए-नए
हो रहे तमाशे
नई सदी में
लहजे बदले
इंद्रप्रस्थ में संवादों के
रंगमंच पर
इनमें-उनमें गजब ठनी है।
 


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