इतनी सर्द हवा में भी
खुशबू का अहसास
अपना कोई प्यारा जैसे
इस पल इतने पास।
इंगुर की नदियाँ बहती हों
मन में आँखों में
प्यार बाँधकर उड़ती चिड़िया
नीली पांखों में
हरियाली के दर्पण दीखा
‘आनन ओप उजास’।
इतने यतन जुगाए तब से
भीतर के अंकुर को
छाया वह छतनार समेटेगी
पीले पतझड़ को
मैले कभी न होंगे वन के
रंगारंग पलास।
धूपों से तितलियाँ बनाकर
उड़ते संग हवा के
क्षण वे फिर आते हैं चुपके
धीरे पाँव दबा के
भरी नींद में सपनाते हैं
वन के आक - जवास।