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कविता

स्कूलों से

माहेश्वर तिवारी


सुबह गए थे
 खिलते ताजा फूलों से
थककर लौट रहे
बच्चे स्कूलों से।

सड़क पार करते
डरते हैं
बच्चे किश्तों में
मरते हैं
गुजरा करते हर दिन
घने बबूलों से।
 
विज्ञापन है
रोड-रोड में
फँसे हुए हैं
ड्रेस कोड में
घबराते हैं
छोटी-छोटी भूलों से।

खाली टिफिन,
बोतलें खाली
रक्खी तही-तहाई
गाली
टकराते हैं जब भी
खाली झूलों से।

 


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