बहुत दिनों के बाद
लौट कर घर में आना।
लगता किसी पेड़ का
फूलों, पत्तों, चिड़ियों से भर जाना।
कपड़ों, बैग
देह से सारी
गर्द झाड़ना गए सफर की
फिर से
शामिल हो जाना
उठकर के
दिन चर्चा में घर की
बात-चीत के
टुकड़े,
बहसों का लेकर कुछ ताना-बाना।
जिन्हें पहन कर
बाहर निकले
वे चेहरे भारी लगते हैं
थम से गए
गीत के टुकड़े
होठों से जारी लगते हैं
लगता सब छिलके
उतार कर
अपने में, अपने को पाना।