हम समय की नदी
तैर कर आ गए
अब खड़े हैं जहाँ
वह जगह कौन है।
तोड़ते-जोड़ते
हर नियम, उपनियम
उत्सवों के जिए
साँस-दर-साँस हम
एक पूरी सदी
तैर कर आ गए
अब खड़े हैं जहाँ
वह सतह कौन है।
होंठ पर
थरथराती हँसी
रोप कर
आँसुओं को पिया
आँख में उम्र भर
हम कठिन त्रासदी
तैर कर आ गए
अब खड़े हैं जहाँ
नागदह कौन है।