तरह-तरह के
रस-आखेटक
घूम रहे हैं।
रस-आखेटक
सिंहासन पर
रस-आखेटक
बाजारों में
रस-आखेटक
जब-क्रीड़ा करते-मिलते
बहते धारों में
वन-उपवन में
रस-आखेटक
हिरन-तितलियों की
तलाश में
नोच-नोच कर
पंखुरी-पंखुरी
हँसते-गाते झूम रहे हैं।
कहते बंद करो,
पर रोना,
होगा वही
यहाँ जो होना,
है उनकी गिरफ्त में
सबकी गर्दन,
घर का कोना-कोना
फरमाते वे तो
रसज्ञ हैं
जन-मन से
गहरे कृतज्ञ हैं
कली-कली को
उपकृत करते चूम रहे हैं।