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कविता

शब्दों के बीच

माहेश्वर तिवारी


शब्दों के बीच
            छिपे अंतरीप हैं हम।

मुट्ठी से
छूट-छूट जाते हैं
मुश्किल से
लोग पकड़ पाते हैं।

लहरों के
तेजतर बहाओं में
मोती से भरे सीप हैं हम।

घेरे हैं
गहरी जलराशि हमें
उखड़-उखड़
जाते हैं, मुश्किल से पाँव थमें,

ज्वार-ज्वार
झेलते थपेड़ों को
सागर के बीच द्वीप हैं हम।
 


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