शब्दों के बीच
छिपे अंतरीप हैं हम।
मुट्ठी से
छूट-छूट जाते हैं
मुश्किल से
लोग पकड़ पाते हैं।
लहरों के
तेजतर बहाओं में
मोती से भरे सीप हैं हम।
घेरे हैं
गहरी जलराशि हमें
उखड़-उखड़
जाते हैं, मुश्किल से पाँव थमें,
ज्वार-ज्वार
झेलते थपेड़ों को
सागर के बीच द्वीप हैं हम।