गीली लकड़ी, चूल्हा चौका
चिमटा बेलन और धुआँ
भीगा अंजन बजते कंगन
यह गोरा तन और धुआँ।
यादें पीहर की सुलगी हैं
धधक उठी है सीने में
सिर पर लंबा घूँघट ओढ़े
ठिठक गई है जीने में
आँखों से बाहर निकला है
मन का चंदन और धुआँ।
बाँट रही है स्नेह सभी को
सुख-दुख रख कर सिरहाने
सास-ससुर की आशीषें हैं
ननद देवरों के ताने
साजन के घर भला लगे हैं
धुँधला दर्पण और धुआँ।
कितनी भी विपदाएँ आईं
साथ न छोड़ा हिम्मत ने
मेहँदी रचे हुए हाथों पर
लिखा यही अब किस्मत ने
चक्की, चारा, झाडू, बर्तन
मिट्टी, ईंधन और धुआँ।