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कविता

लिख रहे हम
अश्वघोष


बिना बोले,
डायरी के पृष्ठ खोले
लिख रहे हम, आज की सच्ची कथाएँ।

लिख रहे हैं भूख, गुरबत और बेकारी
लिख रहे हैं  
किस तरह होती पराजित
कर्मशीला आस बेचारी
अहम के फूटे दमामें
भग्न-से संकल्प थामे
लिख रहे हम शोक में डूबी ऋचाएँ।

लिख रहे हैं, टूटता रिश्ता, उजड़ता प्यार कैसे
लिख रहे हैं
बेसुरे से बज रहे क्यों,
जिंदगी के तार ऐसे
चुप्पियों के तलघरों में
बैठ करके अजगरों में
लिख रहे हम काँपती जख्मी सदाएँ।

लिख रहे हैं, किस तरह से हो रहे हैं
राजनीतिक ये घुटाले
लिख रहे हैं
वोट की खातिर किया है,
आदमी को, जातियों के क्यों हवाले
जिंदगी के गम भुलाकर,
भीड़ में झंडे उठाकर
लिख रहे हम कुछ सियासी आपदाएँ।
 


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