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कविता

किसको बाँटे
अश्वघोष


थोड़ी-बहुत
बची जो खुशियाँ,
असमंजस में किसको बाँटें।

देख रहे हैं, घर आँगन आ गए
अचानक, सन्नाटे की चपेट में,
छोटे-छोटे मसलों के भी
दाढ़ी उगने लगी पेट में
कैसे कर लें कोई कामना,
एकाकी रह गई भावना
दूरी लेकर
बिछी हुई है,
संबंधों की बोझिल खाटें।

जीम झील में खड़े हुए हैं
निश्चल, दीमक लगे शिकारे,
टुकुर-टुकुर से देख रहे हैं
गुमसुम-से सुनसान किनारे
दुर्मति को किस मन से तोड़ें
टूटे मन को कैसे जोड़ें
धरती को कैसे
झकझोरें,
आसमान को कैसे डाटें।
 


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