जिंदगी के पृष्ठ खोलो
इस कथा को फिर टटोलो।
ज्योति धर्मी आँच में
जब तप गया था
तन हमारा,
कौन-सी आँधी चली वो
किस अँधेरे ने
हमें, बेमौत मारा
सिर्फ, सुन लो, कुछ न बोलो
इस कथा को फिर टटोलो।
क्यों हुए हमले अचानक
क्यों हुआ
बेताल मौसम,
क्यों हुई दूषित तपस्या
क्यों मिले, सिर को पटकते
घोर मातम
आँसुओं से जख्म घोलो
इस कथा को फिर टटोलो।
क्या गलत थी चाह अपनी
या गलत
निर्णय हमारे,
सोच कर देखो जरा तुम
जीतकर भी,
क्यों रहे हम, सिर्फ हारे
अलगाव में संवेत घोलो
इस कथा को फिर टटोलो।