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कविता

शब्द लड़ते हैं
अश्वघोष


चुप्पियों के
इक बसेरे में,
शब्द लड़ते हैं अँधेरे में।

बोझ है सिर पर तनावों का,
दिख रहा चेहरा अभावों का
कब तलक
बैठे विचारे चुप,
दर्द के सुनसान डेरे में
शब्द लड़ते हैं अँधेरे में।

उम्र से पहले हुए जर्जर,
वक्त ने सब काट डाले पर
हो गई खुशियाँ
नदारद अब,
झुर्रियाँ हैं सिर्फ चेहरे में
शब्द लड़ते हैं अँधेरे में।

पूछते फिरते सभी से यूँ,
चुक गई सहसा मुखरता क्यूँ
मजबूर होकर
घूमते हैं ये,
जिंदगी के तंग घेरे में
शब्द लड़ते हैं अँधेरे में।
 


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