hindisamay head


अ+ अ-

कविता

घास

प्रेमशंकर शुक्ल


घास जो धरती पर
धीरज की अत्यंत सुंदर उपमा है
गंध और हरियाली बन फैली है
हमारी आवाज में

खुशी के गीत
गुनगुनाती होगी धरती
और फूट पड़ती होगी घास

कविता आवाज की विधा है
और घास विस्तार की

कठिन समय में
जूझने की ताकत लिए
उजाड़ के विरुद्ध फैली है जब तक घास
आमंत्रण है दसों दिशाओं से
पूरंपूर जीवन के लिए।

 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में प्रेमशंकर शुक्ल की रचनाएँ