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कविता

मुस्कुराती हुई फोटो

प्रेमशंकर शुक्ल


मुस्कुराती हुई फोटो
समेटे है अपने भीतर
कितना दर्द

कितनी तड़प-बेचैनी-टीस
हताशा को बरका
उतरी होगी होंठों पर
यह महान क्रिया

‘रेडी’ कहते ही ठेल दिया होगा व्यक्ति ने
दुख की अपनी पोटली
और ‘क्लिक’ के साथ यह ‘स्माइल’
बन गई होगी व्यक्ति के चेहरे का
स्थायी-भाव

मुस्कुराते हुए व्यक्ति से
चिढ़ी होंगी उसकी मुश्किलें
पर जीवन की तरह
फोटो में भी
मुस्कुराता रहा आया होगा
बेपरवाह वह
 


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