वह छोटी-सी नदी
जिसका छटनहवा घाट
चार चुरुआ पानी के साथ
चला आया है
स्मृति के जल में
देखता हूँ जब भी कोई नदी
भीतर के किसी घाट से
बोल पड़ती है वह भी
दौड़ रही है वह
मेरे अंतस् के पहाड़ -
मैदान से
बाहर के समुद्र की ओर
वह छोटी-सी नदी
पानी देती है जो
छोटे-छोटे खेतिहर-मजूरों को
जगह दे रही है
मेरे भीतर
बड़ी-बड़ी नदियों को।